Ayodhya Ram Mandir का 22 जनवरी 2024 को उद्घाटन समारोह है इस दिन Ayodhya Ram Mandir में भगवान श्री राम लल्ला का प्राण प्रतिष्ठा किया जाएगा। ऐसे तो ये सुनकर सबको अच्छा लग रहा भगवान श्री राम का मंदिर बन गया लेकिन आपको इसका इतिहास जानकर और भी गौरवान्वित महशुस होगे की अंत में जीत प्रभु श्री राम की हुई । कहा भला, ऐसा ही कुछ है श्री राम लल्ला की कहाना, अगर आपका भो इतिहास से जुडी चीजो में रूचि रखते है और Ayodhya Ram Mandir Complete history जानना चाहते है तो हम आपको इस आर्टिकल में स्वागत करते है| इस आर्टिकल में त्रेता युग से द्वापर और फिर आधुनिक युग तक के सफ़र पर चर्चा करेंगे |
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त्रेता युग (Ayodhya Ram Mandir Complete history)
अयोध्या नगरी को सर्व प्रथम ववत्सुक मनु ने बसाई थी| और फिर उनके बार उनके पुत्र इच्छाक ने अपने सम्राज्य के राजधानी बनाई | इसी कुल में राजा दशरथ का जन्म हुआ| जिनके पुत्र के रूप में प्रभु के श्री राम का जन्म हुआ। वाल्मीकी रामायण में इसका साक्क्ष मिलता है कि राजा दशरथ जी के घर प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था।
राजा दशरथ ने अयोध्या पर 60 हजार वर्षों तक राज किया और फिर श्री राम ने अयोध्या पर 11 हजार वर्षो तक राज करने के उपरान्त निर्वाण लेने का निर्णय लिया| और अपने सम्राज्य को अपने पुत्रो और अपने भाईयो के पुत्रो में बराबर घराबर बाँट दिया | और फिर प्रभु श्री राम ने अपना लीला समाप्त कर लिए|
प्रभु श्री राम के बाद मुख्य अयोध्या पर कुश का शासन था | जो लम्बे समय तक चला लेकिन प्रभु श्री राम के दूसरे पुत्र या उनके भाइयो के पुत्रो का वंश लम्बे समय तक नहीं चला| कुश ने ही सर्वप्रथम अयोध्या में श्री राम का मंदिर बनवाया| आज हम जिस मंदिर की बात करते हैं उसकी नीव त्रेता युग में श्री राम के जस्ट पुत्र द्वारा रखी जा चुकी थी | उसके पश्चात 31 पीढ़ियां तक विभिन्न राजाओं ने कौशल साम्राज्य पर शासन किया और अयोध्या ही सदैव कौशल देश की राजधानी रही |
हालांकि उसे समय तक सूर्यवंशियों का प्रभुत्व ऐसा नहीं था | जैसा की प्रभु श्री राम या उनके पुत्रो के समय था| लेकिन फिर भी कौशल सदैव एक शक्तीशाली राज्य और महाजनपद के रूप में सम्मानित रहा। तब तक श्री राम के मंदिर का अस्तित्त और महत्त जस का तस बना रहा।
द्वापर युग (Ayodhya Ram Mandir Complete history)
उसके बाद द्वापर युग में कुश के 32वी पीढ़ी में वह राजा आए जिन्होने एक अन्य महाकव्य में सूर्य वंश का प्रतिनिधित्तल किया वे राजा थे बृहद बल जिन्होने समस्त राजाओ के भाती ही महाभरत के युद्ध में भाग लिया | बृहद बल कौरव सेना के तरफ से युद्ध करते हुआ युद्ध के 13वे दिन अभिमन्यु के हाथो वीर गति को प्राप्त हुए |
वृहद बल के बाद उनके पुत्र बृहद शन ने अयोध्या का राज्य सम्भला , हलाकि उनके बाद कौशल प्रदेश धीरे धीरे अपना प्रभुत्व खोता रहा परन्तु राम मंदिर का अस्तित्व सदैव बना रहा|
वृहद बल के 23 पीढ़ीओ के बाद और कुश से 55वी पीढ़ी में एक ऐसे राजा ने अयोध्या का शासन संभाला जिन्होंने एक नए धर्म की ही स्थापना कर दी | उनका नाम सिद्धर्थ था जो आगे चलकर गौतम बुद्ध कहलाये| गौतम बुद्ध के सन्यास लेने के कारण उनके पुत्र राहुल को छोटी उम्र में ही अयोध्या का शासन संभालना पड़ा | बाद में कुछ पीढ़ियां तक बौद्ध धर्म का प्रभाव इस वंश पर रहा किंतु फिर भी उसे समय के शिलालेखों से भी हमें श्री राम के मंदिर के अस्तित्व का पता चलता है
शिलालेखो से Ayodhya Ram Mandir का प्रमाण
चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के शिलालेखों के अनुसार अयोध्या ही गुप्त साम्राज्य की भी राजधानी थी उन्ही शिलालेखों में श्री राम मंदिर के विषय में स्पष्ट रूप से बताया गया है इस साल से लगभग 180 वर्ष पूर्व पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में मिले शिलालेख के समय यह पता चलता है कि उसने भी श्री राम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था इसी मंदिर में उसके द्वारा किए गए दो अश्वमेध यज्ञों का भी वर्णन मिलता है|
शिलालेखों से हमें यह भी ज्ञात होता है कि इस समय उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या पहुंचे और अपनी सेना सहित इसी मंदिर के निकट उन्होंने विश्राम किया, कहा जाता है कि तब ही इस मंदिर के निकट बहुत ही दिव्य अनुभूति हुई और तब उन्होंने पास के ब्राह्मणों से उसे स्थान के विषय में पूछा, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि वह जहां ठहरे हैं वह जर्जर अवस्था में किसी और का नहीं बल्कि स्वयं भगवान श्री राम का मंदिर है, श्रीराम में उनके असीम आस्था थे और उसी के कारण उन्होंने उसे मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और वहां काले पत्थर से एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जो 84 विशाल स्तंभों पर खड़ा था |
ग्रंथो से Ayodhya Ram Mandir का प्रमाण
कालिदास ने भी अपने कालजई ग्रंथ रघुवंशम में रघुवंश का वर्णन किया है इसमें अयोध्या का विशेष रूप से वर्णन है और सबसे विस्तृत वर्णन श्री राम का ही है प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं किंतु अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा ग्रंथ में श्री राम के मंदिर का वर्णन मिलता है
630 ई के आस पास जब चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया तो उसने लिखा कि उसने अयोध्या के पास लगभग 20 बौद्ध मंदिर देखें जिसमें 3000 से भी अधिक बौद्ध भिक्षु रहते थे, उसने अपने लिखे में अयोध्या के एक भव्य मंदिर का भी वर्णन किया है जहां शास्त्र हिंदू भक्त दर्शन हेतु प्रतिदिन आते थे यह माना जाता है कि ह्वेनसांग वास्तव में श्री राम मंदिर को ही देखा था|
मुग़ल कल में Ayodhya Ram Mandir का प्रमाण
1526 में Ayodhya Ram Mandir का प्रमाण
14वीं शताब्दी में इब्राहिम लोदी के शासनकाल तक इस मंदिर के होने के प्रमाण मिलते हैं सन 1526 में जब पानीपत के युद्ध में जब इब्राहिम लोदी की मृत्यु हुई और बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की नींव रखी गई तब जाकर इस मंदिर को तोड़ने के कई अभियान चलाए गए| 1527 में बाबर ने मंदिर को तोड़ने के लिए कई फरमान जारी किया तब 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी इस मंदिर को ध्वस्त करने के लिए अयोध्या पहुंचा|
उसे समय मंदिर के मुख्य महंत स्वामी श्यामानंद जी थे उन्होंने इस मंदिर की रक्षा के लिए भीटी के महाराजा महताब सिंह बद्रीनाथ से सहायता मांगे जब तक महाराज बद्रीनाथ सहायता के लिए आते उसे समय अयोध्या से लगभग 10 किलोमीटर दूर सनेथू गांव के एक पंडित देवी नंद पांडे ने स्थानीय लोगों के एकत्र कर मंदिर को बचाने का प्रयास किया किंतु शत्रु के विशाल सेवा के सामने वह सभी वीरगति को प्राप्त हुए|
उसके बाद महाराज बद्रीनाथ ने इस मंदिर की रक्षा के लिए बाबर की सेना से युद्ध किया किंतु शत्रु की सेना बहुत अधिक थी इसके कारण लाखों राम भक्तों इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए|
इस युद्ध के 15 दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने यह जानते हुए कि उनके मृत्यु निश्चित है केवल हजार योद्धाओं के साथ मंदिर की रक्षा का प्रयास किया| किंतु वे सभी वीरगति को प्राप्त हुए|
लखनऊ गजेटियर में लिखा हुआ है कि लगभग 174000 हिंदू इस मंदिर की रक्षा करते हुए शहीद हो गए| उन सभी के वीरगति के बाद ही मीर बाकी इस मंदिर को तुड़वाने में सफल हो पाया मंदिर के टूटने के बाद मिर बाकी ने वहां पहली बार मस्जिद का ढांचा बनवाया और उसे नाम दिया मस्जिदे जन्म स्थान अर्थात जन्म स्थान का मस्जिद इसके अतिरिक्त वहां उसने एक संदेश खुदवाया जिसमें लिखा था की महान बाबर के आदेश पर दयाल मीर बाकी में फरिश्तों के इस जगह को मुकम्मल रूप दिया है यहां फरिश्तों का अर्थ श्री राम से ही है |
अकबर के समय Ayodhya Ram Mandir का प्रमाण
मंदिर के उद्धार के लिए अनेको हिंदू वीरों ने बार-बार युद्ध करते रहे और अपने प्राणों को उत्सर्ग करते रहे | ये कर्म बाबर, हुमाऊ और अकबर के कल तक चलता रहा | बार-बार होते युद्धों से अकबर इतना तंग आ गया कि बीरबल और टोडरमल के कहने पर उसने खसकी टाट से उसे मस्जिद के चबूतरे पर 3 फीट का एक छोटा सा राम मंदिर बनवा दिया| उसके पुत्र जहांगीर और पोते शाहजहां ने भी हिंदू विद्रोह को पुन शुरू होने के दर से उसे राम मंदिर को वहीं रहने दिया|
औरंजेब के समय Ayodhya Ram Mandir का प्रमाण
औरंजेब एक क्रूर शासक था जो लगभग 10 बार अयोध्या पर आक्रमण किया और अयोध्या में स्थित सैकड़ो हिन्दू मंदिरों को तोड़ डाला उस समय राम मंदिर के रक्षा के लिए श्री वैश्णवदास जी ने औरंगजेब की सेना पर लगभग 30 बार आक्रमण किया| लेकिन शत्रु के सेना से जीत नहीं पाए और वीर गति को प्राप्त हुए |
राजा जयसिंह के Ayodhya Ram Mandir का प्रमाण
जयपुर के राजा जयसिंग द्वितीय ने प्रयास किया कि मंदिर का स्थान वापस हिंदुओं को दे दिया जाए उनकी मुगल शासको से अच्छे मित्रता भी थी और वे एक प्रभावशाली व्यक्ति थे किंतु फिर भी वह अपने प्रयास में असफल रहे क्योंकि तत्कालीन मुगल शासक फारुख सियार ने उनके इस मांग को मानने से इंकार कर दिया फिर भी अपने प्रयासों से राजा जयसिंह द्वितीय ने एक बार फिर इस मंदिर के पास एक राम चबूतरा बनवा दिया ताकि हिंदू वहां पर पूजा कर पाए|
अंग्रेज के समय Ayodhya Ram Mandir की स्थिति
फ्रांस के एक पादरी जोसेफ डिफेंडर ने “जोश द ” पुस्तक 1788 में लिखे, जिसमे इस बात पर खुलासा किया है कि बाबरी मस्जिद श्री राम मंदिर को तोड़कर ही बनाई गई है|
1838 में एक अंग्रेज पुरातत्व विविधता मांटेग्यू मेरी माटी ने एक जांच की और अपनी रिपोर्ट में उन्होंने इस बात का खुलासा किया कि जिन स्तंभों पर बाबरी मस्जिद खड़ी है वह स्तंभ वास्तव में मंदिर कहीं स्तंभ है
न्यालय में Ayodhya Ram Mandir की स्थिति
सन1800 में अखाड़े के महंत श्री रघुवर दास पहली बार इस मामले को न्यायालय ले गए| उसे समय फैजाबाद न्यायालय के न्यायाधीश पंडित हरकिशन ने इस मामले को सुना, रघुवर दास जी ने प्रार्थना की कि उन्हें राम चबूतरे पर छतरी लगाने दी जाए किंतु उनकी अर्जी ठुकरा दी गई|
आजादी के बाद Ayodhya Ram Mandir की स्थिति
1947 में जब हमें आजादी मिली तो लोगों को लगा कि अब मंदिर बन ही जाएगा किंतु ऐसा नहीं हुआ| ततकालीन कांग्रेस सरकार की कार्य सूची में दूर-दूर तक कहीं भी राम मंदिर नहीं था सरकार ने मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला लगवा दिया और हिंदुओं को एक अन्य द्वारा से प्रवेश करने की अनुमति मिली|
सन 1949 में अचानक एक दिन मंदिर के अंदर से घंटी की आवाज आने लगी और पता चला की मस्जिद के अंदर श्री राम की एक मूर्ति प्रकट हुई है मुसलमानों ने आरोप लगाया कि वह मूर्तियां हिंदुओं ने रखी है हिंदू और मुस्लिम दोनों उसे स्थान पर एकत्र होने लगे और विवाद इतना बड़ा की बात तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक पहुंच गई | तब एक्शन लेते हुए अयोध्या के जिलाधीश “के के नायर” से कहा कि वहां से श्री राम की मूर्तियां हटा दी जाए, किंतु नायर ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया| तब 27 दिसंबर 1949 को जवाहरलाल नेहरू ने पुनः पत्र भेज कर के नायर को श्री राम की मूर्तियां वहां से हटाने को कहा इस पर क नायर ने अपना इस्तीफा दे दिया और कहा कि श्री राम की मूर्तियां हटाने के स्थान पर वहां एक जालिम हुआ दरवाजा लगा दिया जाए| नेहरू जी को यह बात पसंद आई और उन्होंने ऐसा ही किया|
1950 - 2024 तक का सफ़र
सन 1950 में हिंदू महासभा के अधिवक्ता गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला न्यायालय में एक अर्जी डाली कि उसे स्थान पर हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी जाए इस पर न्यायालय ने दरवाजे के बाहर से हिंदुओं को पूजा करने की स्वीकृति दी किंतु मंदिर के अंदर केवल पुजारी को ही जाने का अधिकार दिया|
1984 में संघ विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी मंदिर के उद्धार के लिए एक समिति का गठन करते हैं और सीतामढ़ी से अयोध्या तक की रथ यात्रा निकालने का निर्णय लेते हैंकिंतु इस समय अचानक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई जिससे यह यात्रा रुक गई
1986 में जब शाहबानो ने अपने पति से गुजारा भत्ता लेने वाला केस जीती तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुसलमानों को खुश करने के लिए संसद में प्रस्ताव लाकर न्यायालय के फैसले को पलट दिया| इससे हिंदुओं में असंतोष फैला और तब हिंदुओं के संतोष के लिए सरकार ने राम मंदिर का ताला खुलवाकर हिंदुओं को वहां पूजा अर्चना करने की स्वीकृति दे दी|
उसके बाद मुस्लिम भड़क गए और 6 फरवरी 1986 को उन्होंने बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया| 1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल दिया जाए और इससे सदा के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए|
1990 में संघ और विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक10000 किलोमीटर की एक रथ यात्रा निकाली इसी दौरान बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव के आदेश पर समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया| आडवाणी जी के गिरफ्तारिक के बाद भी रथ अयोध्या पहुंचा था और 30 अक्टूबर 1990 के हजारों की संख्या में राम भक्तों ने पुलिस के रोकने के बाद भी अयोध्या में प्रवेश किया और बाबरी मस्जिद पर हिंदू ध्वज फहरा दिया|
3 दिन के बाद 2 नवंबर 1990 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने राम भक्तों पर गोली चलवाई जिसमें सैकड़ो कर सेवकों ने अपने प्राणों से हाथ धोया| कहा जाता है कि उसे दिन सरयू का तट हिंदुओं की लाशों से ढक गया था|
6 दिसंबर 1993 को 2 लाख से अधिक कर सेवक अयोध्या पहुंचे| उसे समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने पुलिस को भीड़ पर गोली ना चलने का निर्देश दिया, उन्होंने सोचा था कि वह भीड़ को सुरक्षा बलों द्वारा नियंत्रित कर लेंगे, किंतु ऐसा नहीं हुआ उसे बढ़ती हुई लाखों की भीड़ के सामने पुलिस की हिम्मत नहीं हुई कि कोई कार्यवाही कर सके और फिर उसी दिन यानि 6 दिसंबर 1993 को दोपहर 1:55 पर बाबरी मस्जिद का पहला गुंबद गिरा दिया गया और फिर डेढ़ घंटे बाद दोपहर 3:30 को दूसरा गुंबद गिरा दिया गया, शाम 5:00 बजे तक तीसरा गुंबद भी गिरा दिया गया | इसके बाद इसकी जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उसी शाम 7:00 बजे तक उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया| इसके साथ ही पूरे देश में हिंदू मुस्लिम दंगा फैल गया|
इस घटना के 10 दिनों के बाद इसकी जांच के लिए लिब्रहम आयोग का गठन किया गया और जांच के लिए 3 महीने का समय दिया गया| लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इस आयोग को जांच पूरी करने में 3 महीने नहीं बल्कि 17 वर्षों से अधिक का समय लग गया| 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपने एक विस्तृत रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट रूप से लिखी की जहां पर विवादित ढांचा था, उसे मंदिर को तोड़कर ही बनाया गया था इस रिपोर्ट को भी लिब्रहम रिपोर्ट में शामिल किया गया|
30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने 700 प्रस्तवो के अपने अंतिम रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दीं, 2010 के अपने ऐतिहासिक फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित जमीन को राम जन्मभूमि घोषित किया| उन्होंने यह निर्देश दिया कि श्री राम की मूर्तियों को वहां से न हटाया जाए उन्होंने पूरे विवादित जमीन को राम जन्मभूमि ट्रस्ट, निर्मोही अखाड़ा, और सुननी वक्र बोर्ड, के बीच में बराबर बांट दिया| हिंदू और मुस्लिम पक्ष दोनों इस फैसले से सहमत नहीं हुए| और उन्होंने 2011 में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद से जुड़े सभी दस्तावेजों को अंग्रेजी में अनुवाद करने को कहा, जिसमें बहुतअधिक समय लगा और वर्षों तक इसमें कोई सुनवाई नहीं हुई| अंततः 9 नवंबर 2019 में उच्चतम न्यायालय ने अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए वर्तमान सरकार को आदेश दिया की 3 महीने के अंदर एक ट्रस्ट का गठन जो मंदिर निर्माण करेगी | साथ ही सरकार को मुस्लिम पक्क्ष के लिए 5 एकड़ जमीन अयोध्या में देने को कहा|
निष्कर्ष
इस प्रकार 491 वर्षों के असीम संघर्षों के बाद राम जन्मभूमि पुनः हिंदुओं को प्राप्त हुई| फिर 5 फरवरी 2020 में ट्रस्ट का गठन होता है और मंदिर का निर्माण आरंभ होता है और अब 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में श्री राम लल्ला के मंदिर का भव्य उद्घाटन किया गया| यह है श्री राम मंदिर का पूरा इतिहास
हम यह कभी नहीं भूल सकते है कि यह जो श्री राम मंदिर हमें घर बैठे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है उसके पीछे 491 वर्षों का संघर्ष और लाखों हिंदुओं के प्राणों का बलिदान छिपा है इसके लिए हम सभी गौरव का अनुभव करें कि हमें अपने जीवन काल में श्री राम मंदिर को देखने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है “जय श्री राम”